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जैन रामायण द्वितीय सर्ग ।
ओंको क्रीड़ा करते देखा। उन्होंने भी उसको देखा । पद्मिनियाँ जैसे सूर्य को देख कर विकसित होती हैं वैसे ही वे अपने नेत्र- पद्मिनियोंको विकसित करती हुई, उसको, पति बनानेकी भावना हृदयमें धारणकर, सानुराग देखने लगीं। थोड़ी देर में वे कामसे अति व्याकुल हो, लज्जा छोड़, रावणके पास जा कहने लगी :- " तुम हमें पत्नीरूपमें ग्रहण करो ।" उनमें सर्वश्री की पुत्री पद्मावती, सुरसुंद
की पुत्री मनोवेगा, बुधकी कन्या अशोकलता और कनककी पुत्री विद्युत्प्रभा मुख्य थीं । उनके तथा दूसरी जगत्प्रसिद्ध कुलोंकी कन्याओंके साथ जो कि रावणपर मुग्ध हो रही थीं - रागी रावणने गांधर्व विधिसे ब्याह किया। उन कन्याओंकी रक्षाके लिए जो पुरुष आये थे, उन्होंने जाकर अपने स्वामियोंसे कहा कि कन्याओंको ब्याह कर कोई लेजा रहा है । यह सुन, कन्याओंके पिताओंको साथ ले, क्रोधके साथ अमरसुंदर नामक विद्या धरोंका इंद्र रावणको मारने की इच्छा से उसके पीछे दौड़ा। उसको आते देख, सब नवौढ़ा कन्याएँ कहने लगीं: - हे स्वामी ! विमानको शीघ्रतासे चलाओ, विलंब न करो; क्योंकि अकेला अमरसुंदर ही अजेय है, और इस समय तो वह कनक और बुध आदि योद्धाओं सहित आया है, इससे उसको युद्धमें जीतना कठिन है ।" उनके ऐसे वचन सुनकर रावण हँसा और बोला:-" हे सुन्दरियो !