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जैन रामायण दसवाँ सर्ग।
समय आहार पानी मिलेगा तो मैं पारणा करूँगा; अन्यथा निराहारी ही रहूँगा। ऐसा अभिग्रह कर, परम समाधिर्म लीन हो; प्रतिमा-चित्रकी भाँति स्थिर हो रहे ।"
रामका अभिग्रह पूर्ण होना। . एक वार विपरीत शिक्षा प्राप्त वेग गतिवाला घोड़ाप्रतिनंदीको उसी वनमें ले गया जहाँ राम प्रतिमा धरकर, खड़े थे । वहाँ जाकर नंदनपुण्य नामा सरोवरके बीचमें उसका घोड़ा कीचमें फँस गया। उसकी, सेना भी खोज करती हुई उसके पीछे ही पहुंच गई । कीचमेंसे घोड़ेको. निकाल कर, राजाने वहीं पड़ाव डाला । फिर स्नानाहारसे निवृत्त होकर उसने परिवार सहित भोजन किया। उस समय ध्यान पारकर, राम पारणा करनेकी इच्छासे उसके पडावमें गये । प्रतिनंदी राजा उन्हें देखकर उठ खड़ा हुआ । उसने अवशेष आहार पानीसे रामको प्रति लाभा । ऋषि रामगे पारणा किया । आकाशमसे पुष्पवृष्टि हुई।
तत्पश्चात रामने देशना दी । उसको सुनकर प्रतिनंदी. आदि राजा सम्यक्त्व सहित बारह व्रतधारी श्रावक हुए। वनवासी देवताओंसे पुजते हुए राम चिरकालतक उसी वनमें रहे । राम मुनि -भवका पार पानेके लिए, एकः माससे, दो माससे, तीनमाससे और चार माससे पारणा करने लगे। किसीवार पर्यकासन लगाकर, किसीवार