________________
एक वार हनुमान शाश्वत चैत्योंकी वंदना करनेके लिए मेरु पर्वत पर गया। वहाँ उसने सूर्यको अस्त होते हुए, देखा । उसको देखकर सोचने लगा,-" अहो ! इस संसारमें उदय और अस्त सबका होता है। सूर्यका दृष्टान्त इसके लिए प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस नाशमान जगतको धिकार ! है।" ऐसा विचार कर हनुमान अपने नगरमें गया। वहाँ जाकर उसने, अपने पुत्रों को राज्यदे, धर्मरत्न आचार्यके पाससे दीक्षा लेली । उसके साथ अन्यान्य साढे सातसौ राजाओंने भी दीक्षा लेली। उसकी पत्नियोंने भी लक्ष्मीवती आर्याके पाससे व्रत अंगीकार कर लिया। अन्तमें हनुमान मुनि ध्यानरूपी अग्निसे सारे कर्मोंको जड़मूलसे जला, शैलेशी अवस्थाको प्राप्तकर, मोक्षमें गये।
दो देवोंका अयोध्या आना; लक्ष्मणकी मृत्यु हनुमानके दीक्षालेनेकी बात रामने सुनी। वे सोचने लगे:-" भोग सुखका त्याग करके हनुमानने कष्टदायिनी दीक्षा कैसे ग्रहणकी होगी?" सौधर्मेन्द्रने रामके ये विचार अवधिज्ञानद्वास जाने । उसने अपनी सभामें कहा:-- "अहो ! कर्मकी गति बड़ी ही विचित्र है । रामके समान चरम शरीरी पुरुष भी इस समय धर्मपर हँस रहे हैं और विषय सुखकी प्रशंसाकर रहे हैं । मगर इसका कारण राम,