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जैन रामायण दसवाँ सर्ग।
चवकर वह विशल्या नामा लक्ष्मणकी स्त्री हुई है । गुण-- धर नामा गुणवतीका भाई भवभ्रमण करके कुंडलमंडित नामा राजपुत्र बना । उस भवमें उसने चिरकालतक श्रावक व्रत पाला और अन्तमें मरकर सीताका सहोदर भ्राताभामंडल हुआ। ___ काकंदी नामा नगरीमें वामदेव ब्राह्मणकी पत्नी श्यामलाके वसुनंद और सुनंद नामा दो पुत्र हुए । एकवार वे दोनों अपने घरमें बैठे हुए थे । उसी समय मासोपवासी मुनि आये । उन्होंने भक्ति पूर्वक उनको प्रतिलाभा। दानधर्मके प्रभाव से दोनों मरकर, उत्तरकुरुमें युगलिया हुए । वहाँसे मरकर, वे सौधर्म देवलोकमें देवता हुए। वहाँसे चवकर, फिर काकंदी पुरीहीमें वामदेवराजाकी सुदर्शना नामा स्वीकी कूखसे वे प्रियंकर और शुभंकर नामा दो पुत्र जन्मे । वहाँ चिरकालतक राज्यकरनेके बाद वे दीक्षा लेकर मरे और ग्रैवेयकमें देवता हुए। वहाँसे चवकर, दोनों लवण और अंकुश हुए हैं । इनके पूर्व भवकी माता सुदर्शना चिरकालतक भवभ्रमण करके यह सिद्धार्थ हुआ है, जिसने रामके दोनों पुत्रोंको पढ़ाया है।" ___ इस भाँति जयभूषण मुनिसे पूर्व भव सुनकर कई लोगोंको वैराग्य हो आया । रामके सेनापति कृतान्तने तत्काल ही दीक्षा ले ली । रामलक्ष्मण जयभूषण मुनिको वंदना कर, वहाँसे सीताके पास गये । सीताको देखकर