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जैन रामायण दसवाँ सर्ग।
हे स्वामी ! महाव्रतधारिणी स्वामिनी सीता भी वहीं हैं। अब वे निर्दोष शुद्ध सती-मार्गकी भाँति मोक्ष मार्ग बता रही हैं।"
लक्ष्मणके वचन सुनकर राम स्थिर हुए और कहने लगे:-" हे बन्धु ! प्रिया सीताने केवलीके पाससे व्रत ग्रहण किया यह बहुत ही अच्छा किया।" । तत्पश्चात राम जयभूषण मुनिके पास गये । और नमस्कार करके उनके सामने बैठ गये। मुनिकी देशना सुनी। फिर रामने पूछा:--" हे स्वामी! मैं आत्माको नहीं जानता हूँ, इसलिए कृपा करके बताइए कि मैं भव्य हूँ या अभव्य ?" केवलीने उत्तर दिया:-“हे राम ! तुम केवल भव्य हो । इतना ही नहीं, तुम इसी भवमें केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षमें जानेवाले हो ।” रामने फिर पूछा:-हे भगवान ! मोक्ष तो दीक्षा लेनेसे मिलता है, और दीक्षा सबका त्याग करनेको ली जाती है। मगर बन्धु लक्ष्मणको छोड़ना मेरे लिए कष्टसाध्य है । फिर मैं मोक्षमें कैसे जा सकता हूँ?" केवलीने उत्तर दियाः-" अबतक तुम्हें बलदेवकी संपत्ति भोगना है। उस भोगावली के पूर्ण होनेपर तुम निःसंग-वैरागी-बनोगे और दीक्षा लेकर मोक्षमें जाओगे; शिवसुख पाओगे | " .
.. राम और सुग्रीवका पूर्वभव। । विभीषणने नमस्कार कर मुनिसे पूछा:--" हे स्वामी !