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जैन रामायण नवाँ सर्ग।
www.mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwww चाहिए । ) वज्रजंघने भी मनुष्य भेजकर, अपने पुत्रोंको बुलाया। लवण और अंकुश भी-बहुत निवारण करनेपर भी-उनके साथ युद्धमें गये ।।
दूसरे दिन दोनों सेनाओंमें बहुत बड़ा युद्ध हुआ। उस युद्ध में बलवान शत्रुओंने वज्रजंघकी सेनाको परास्त कर दिया। अपने मामाकी सेनाकी दुःस्थिति देखकर लवण और अंकुशको क्रोध आया । तत्काल ही वे निरंकुश हाथीकी तरह अनेक प्रकारके शस्त्रोंकी वर्षा करते हुए शत्रुओंर दौड़े। वर्षाऋतुके पूरको जैसे वृक्ष नहीं सह सकते हैं, वैसे ही शत्रु उन बलवान वीरोंके प्रहारको न सह सके । पृथुराजा सेना सहित पीछा हटने लगा-युद्ध छोड़ भागने लगा। यह देख रामके पुत्रोंने हँसते हुए, उसको कहा:-" तुम प्रख्यात-जाने हुए-वंशवाले होकर भी हम अज्ञात कुलवालोंके सामने रणमें पीठ दिखाकर कैसे भागे जा रहे हो ?"
उनके ऐसे वचन सुनकर, पृथु राजा पीछा फिरा और नम्रता पूर्वक बोला:-" मैंने, तुम्हारा पराक्रम देखकर, अब तुम्हारा कुल जान लिया है । वज्रजंघ राजाने अंकुशके लिए मेरी कन्याको माँगा, यह मेरे ही हितकी बात है । क्योंकि ऐसा बलवान चर खोजनेपर भी मुश्किलसे मिल सकता है।" इतना कह, पृथुने उसी समय अपनी कन्या अंशको देनेका अभिवचन दिया । अपनी कनक