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________________ हनुमानका सीताकी खबर लाना। ३०७ हनुमानने कहा:-" पवनंजयका मैं पुत्र हूँ। अंजनाने मुझको जन्म दिया है । हनुमान मेरा नाम है । आकाशगामिनी विद्यासे मैंने समुद्रको लाँघा है । रामने सुग्रीवके शत्रुका संहार कर दिया, इसलिए वह उनका प्यादा बन रहा है। राम अपने अनुज लक्ष्मण सहित अभी किष्किधामें रहे हुए हैं। दावानल जैसे गिरिको तपाता है वैसे ही राम, दूसरोंको तपाते हुए, तुम्हारे वियोगसे रातदिन परिताप पाते हैं । हे स्वामिनी ! गायके विना बछड़ा जैसे व्याकुल होता है, वैसे ही लक्ष्मण तुम्हारे दुःखसे पीडित हो रहे हैं, वे निरन्तर शून्य दिशाओंको देखा करते हैं। उनको लेशमात्र भी सुख नहीं है । कभी शोकसे और कभी क्रोधसे, राम और लक्ष्मण हर समय दुखी रहते हैं। सुग्रीव उनको बहुत कुछ आश्वासन देता है; परन्तु उन्हें लेश भी शान्ति नहीं होती । भामंडल, महेंद्र, और विराध आदि खेचर रातदिन प्यादेकी भाँति उनकी सेवा करते हैं; जैसे कि देवता इन्द्रकी सेवा किया करते हैं । हे देवी! तुम्हारी शोधके लिए, मुझे सुग्रीवने उपयुक्त बताया इस लिए रामने अपना चिन्ह-अंगूठी-मुझको देकर, यहाँ भेजा है। तुम्हारे पाससे भी उन्होंने, तुम्हारा चूडामणि मँगवाया है। इसको देखकर उन्हें मेरे यहाँ आनेका विश्वास होगा।" इस भाँति रामका वृत्तान्तं जानकर, सीताको बहुत हर्ष हुआ । उन्होंने २१ दिनसे भोजन नहीं किया था। उस
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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