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जैन रामायण छठा सर्ग।
निर्दोष शरीरवाली कुमारियों को भी देखा; वे विद्यासाधनके लिए तत्पर होकर ध्यान कर रही थीं। उसी समय अकस्मात उस द्वीपमें दावानल प्रकट हुआ। कुमारियाँ और मुनि दावानलके संकटमें फँस गये । साधर्मी वात्सल्यभावके कारण विद्या द्वारा सागरमेंसे जल लेकर, हनुमानने अग्निको शान्त कर दिया, जैसे कि मेघ बरसकर अग्निको शान्त कर देते हैं। - उधर उन कन्याओंको उसी समय विद्याएँ सिद्ध हो गई इस लिए वे ध्यान रत दोनों मुनियोंको प्रदक्षिणा दे, हनुमानसे कहने लगी:-" हे परम अहंत भक्त ! आपने हमें आपत्तिसे बचाया इसके लिए हम आपकी कृतज्ञ हैं। आपहीकी सहायतासे असमयमें भी हमें विद्याएँ सिद्ध हो गई हैं।" हनुमानने पूछा:-" तुम कौन हो?"
उन्होंने उत्तर दिया:--" इस दधिमुख द्वीपमें, दधिमुख नगर है। उसमें गंधर्वराज नामका राजा राज्य करता है। उसकी कुसुममाला नामक रानीकी कूखसे हम तीनों कन्याओंका जन्म हुआ है । कई खेचर पतियोंने हमें चाहा था; अंगारक नामका एक उन्मत्त खेचर पति में हमें माँगता था; परन्तु हमारे स्वाधीन विचारी पिताने हमें किसीको नहीं दिया । एक वार हमारे पिताने एक मुनिसे पूछा कि--" इन कन्याओंका पति कौन होगा ?" मुनिने