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________________ सीताहरण । २६१ खड़ा रह ।" कहता हुआ जटायू पक्षी क्रोध कर रावणपर ' झपटा । और अपने तीक्ष्ण नाखूनोंकी अणियोंसे उस बड़े पक्षीने रावणके उरस्थलको चीरना शुरु किया; जैसे कि किसान हलसे भूमिको चीरता है । रावणने क्रोध कर दारुण खग खींच लिया और ‘उससे जटायुके पाँोंको काट उसे पृथ्वीपर गिरा दिया। फिर निःशंक हो; सीताको पुष्पक विमानमें बिठा अपना मनोरथ पूर्ण कर, शीघ्रताके साथ वह आकाशमार्गसे चला। __“शत्रुओंको मथन करनेवाले हे नाथ रामभद्र ! हे वत्स लक्ष्मण ! हे पूज्य पिता! हे महावीर बन्धु भामंडल ! जैसे बलिको कौआ उड़ा ले जाता है, वैसे ही यह रावण छलसे तुम्हारी सीताको हर कर ले जा रहा है।" इस भाँति रुदन करती हुई सीता भूमि और आकाशको भी रुलाने लगी। मार्गमें अकंजटीके पुत्र रत्नजटी खेचरने सीताका रुदन सुना। वह सोचने लगा-“यह रुदन अवश्यमेव रामकी पत्नी सीताका है; और ये शब्द समुद्र पर सुनाई दे रहे हैं इस लिए जान पड़ता है कि रामलक्ष्मणको धोखा देकर रावणने सीताका हरण किया है । इस लिए उचित है किमैं इस समय सीताको छुड़ाकर अपने स्वामी भामंडल पर उपकार करूँ।"
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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