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सीताहरण ।
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तत्पर हो जायेंगे, तो फिर हमारा जीवित रहना भी कठिन होजायगा; हम न जी सकेंगे। हे नाथ ! मेरे इस अज्ञात दोषको क्षमा करो, और मेरे लिए जो कर्तव्य हो वह बताओ। क्योंकि स्वामीका कोप सेवक पर केवल उसे शिक्षा देनेहीके लिए होता है, जैसे कि गुरुका शिष्य 'पर!"
रामने कहा:-"वज्रकरणके साथ संधि कर लो। सिंहोदरने 'तथास्तु' कहकर स्वीकारता दी।
पश्चात रामचंद्रकी आज्ञासे वज्रकरण वहाँ गया और विनयसे रामके सामने खड़ा हो, हाथ जोड़ बोला:"ऋषभदेव स्वामीके वंशमें आप बलभद्र और वासुदेव उत्पन्न हुए हैं। ऐसा मैंने सुना है । आज सद्भाग्यसे हमें आप दोनोंके दर्शन हुए हैं । बहुत दिनोंके बाद आपको हम पहिचान सके हैं । आप भरता के नाथ हैं। मैं और दूसरे सब राजा आपहीके किंकर हैं । हे नाथ ! मेरे स्वामी सिंहोदरको छोड़ दीजिए और इनको ऐसी शिक्षा दीजिए कि जिससे, मेरे दूसरेको नमस्कार नहीं करनेके, अभिग्रहको ये सहन करें । ' अर्हत देव और साधु मुनिराजके सिवा दूसरोंको नमस्कार नहीं करूँगा ।' प्रीतिवर्द्धन मुनिके पाससे मैंने ऐसा दृढ़ नियम लिया है।"
रामने भ्रकुटिसे संज्ञा की । सिंहोदरने वह बात स्वीकार कर ली । लक्ष्मणने सिंहोदरको छोड़ दिया। सिंहो