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सीताहरण |
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भोजन अपने मनुष्योंके द्वारा, लक्ष्मणके साथ, रामके पास पहुँचाया ।
भोजन करके रामने, कुछ बातें बता, लक्ष्मणको सिंहोदर राजाके पास भेजा । लक्ष्मणने सिंहोदर राजाके पास जाकर मधुर वचनोंमें कहाः " सारे राजाओंको दासके समान बनानेवाला दशरथ राजाका पुत्र भरत राजा, तुमको, वज्रकरणसे विरोध न करनेका, आदेश करते हैं ।" यह सुनकर सिंहोदरने कहा:- भरतराजा अपनी भक्ति करनेवाले सेवकों पर ही कृपा करते हैं दूसरों पर नहीं करते; इसी भाँति मेरा यह दुष्ट सामंत वज्रकरण मुझको नमस्कार नहीं करता है फिर तुम ही कहो कि, मैं इसपर कैसे कृपा कर सकता हूँ ? ”
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लक्ष्मणने कहा :-- “ वज्रकरण तुम्हारे प्रति अविनयी नहीं है। उसने, धर्मके अनुरोधसे दूसरोंको प्रणाम करनेकी प्रतिज्ञा ली है इसी लिए वह तुमको प्रणाम नहीं करता है । इसलिए तुम वज्रकरण पर कोप न करो । फिर राजा भरतकी आज्ञा मानना भी तुम्हारे लिए आवश्यक है; क्योंकि भरत राजा समुद्रांत पृथ्वीपर राज्य करनेवाला है । "
लक्ष्मणके ऐसे बचन सुन, सिंहोदर, क्रोध करके बोला:–“ यह भरत राजा कौन है ? जो वज्रकरणका पक्षकर, पागल हो मुझको इस भाँति कहलाता है । "