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________________ सीताहरण । ( अतिबलवान पुरुषों के आगे मायाका उपाय ही चलता है ।) वज्रकरणके इस कपटका वृत्तान्त किसीने सिंहोदर राजासे कह दिया ' खलाः सर्वकषा खलु ।' " २०९ (दुष्ट पुरुष सदा सबको छुरीकी तरह हानि पहुँचाने वाले ही होते हैं। वज्रकरणका वृत्तान्त जानकर, सिंहोदर वज्रकरणपर कुपित हो सर्पकी भाँति फूँकारे करने लगा । । यह बात किसीने जाकर वज्रकरणको सुनाई। उसने उससे पूछा:" तूने कैसे जाना कि सिंहोदर मुझपर कुपित हुआ है । " उसने उत्तर दियाः - " कुंदनपुर में एक समुद्रसंगम नामा श्रावक रहता है, उसका मैं 'विद्युदंग ' नामा पुत्र हूँ | मेरी माताका नाम ' यमुना ' है । मैं जवान हुआ तब कितना ही सामान लेकर उसको बेचनेके लिए मैं उज्जयनी नगरी में गया । वहाँ, मृगनयनी 'कामलता ' नामा, एक वेश्याको मैंने देखा । उसको देखते ही मैं कामदेवका शिकार बनगया। एक ही रात इसके पास रहूँगा, यह सोच कर मैं उसके पास गया और, उससे समागम किया; परन्तु जालमें जैसे मृग फँस जाता है, वैसे ही म भी उसकी आसक्ति - जालमें दृढ़तासे बँध गया । और उम्र भर परिश्रम करके मेरे पिताने जो द्रव्य एकत्रित किया था उसको मैंने छः महीने में ही उड़ादिया । " १४ -
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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