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जैन रामायण चतुर्थ सर्ग I
सभा में बैठे हुए नारदने सब वृत्तांत सुना । इससे वह - वहाँसे तत्काल ही दशरथ राजाके पास गया । राजा दशरथ उन देवर्षिको दूरही से आते देख खड़ा होगया । फिर नमस्कार कर उसने गुरुके समान गौरव करके उनको बिठाया ।
बैठने पर दशरथने पूछा:-" आप कहाँ से आये हैं ? " नारदने उत्तर दिया :- " पूर्व विदेह क्षेत्रमें पुंडरीकिणी नगरीमें, सुरों और असुरोंने मिलकर “ श्रीसीमंधर " स्वामीका निष्क्रमणोत्सर्व किया था । मैं उसीको देखने विदेहमें गया था । उस उत्सवको देखकर मेरुपर गया वहाँ तीर्थनाथकी वंदना करके मैं लंकामें गया वहाँ - शांतिग्रहस्थ शान्तिनाथको नमस्कार कर रावणके घर गया । वहाँ किसी निमित्तियाने जनककी पुत्री जानकी के निमित्त तुम्हारे पुत्र द्वारा उसकी मौत बताई । यह सुनकर बिभीषणने तुम दोनोंको मारनेकी प्रतिज्ञा की है। ये सब बातें मैंने सुनी हैं । वह महाभुज अब -थोड़े ही समय में यहाँ आ पहुँचेगा । तुम्हारे साथ मेरा - साधर्मीपनका प्रेम है, इसी लिए मैं शीघ्रताके साथ लंकासे तुम्हें समाचार सुनाने यहाँ आया हूँ। "
१ - दीक्षा लेने के लिए जाते समय होनेवाला उत्सव । [ श्रीसीमंधर • स्वामीने मुनिसुव्रत और नमिनाथके अंतर में दीक्षा ली है. `समय समझना | ]