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जैन रामायण द्वितीय सर्ग ।
दितिने सुलसासे कहा:-" वत्से ! तेरा स्वयंवर है । मगर मेरे हृदयमें एक बातका शल्य है । उस शल्यका निवारण करना तेरे ही हाथमें है । अतः प्रारंभसे वह बात कहती हूँ । तू ध्यान लगाकर सुन ।” - "श्री ऋषभदेव स्वामीके भरत और बाहुबलि दो पुत्र हुए। दोनोंके 'सूर्य' और 'सोम ' क्रमशः दो पुत्र , हुए। येही दोनों मुख्य वंशधर हैं-इन्हीं दोनोंके नामसे वंश चलते हैं। सोमके वंशमें मेरा भाई 'तृणबिन्दु' हुआ है और तेरे पिता अयोधनने सूर्यवंश जन्म लिया है । अयोधन राजाकी बहिन सत्ययशाके लग्न तृणबिंदुके साथ हुए हैं । उसकी कूखसे 'मधुपिंग' नामका एक पुत्र * जन्मा है । हे सुन्दरी ! उसी मधुपिंगको मैं तुझे देना
चाहती हूँ; और तेरे पिता तुझे, स्वयंवरमें आये हुए किसी भी राजाको-जिसको तू पसंद करेगी-देना चाहते हैं। स्वयंवरमें तू किसको वरेगी सो मैं नहीं जान सकती । इसी लिए मेरे हृदयमें भारी दुःख पैदा हो रहा है। इस दुःखको मिटाने के लिए तू मेरे सामने कबूल कर कि, तू स्वयंवर मंडपमें मेरे भ्रातृज ( भतीजे ) मधुपिंगको ही वरेगी।" . सुलसाने अपनी माताका कथन स्वीकार किया। मंदोदरीने सारी बातें जाकर सगर राजाको कहीं। . सगर राजाने अपने पुरोहित विश्वभूतिको आज्ञा दी। तत्काल. ही उस शीघ्र कविने 'राजलक्षणसंहिता'