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रावणका दिग्विजय ।
' अज' शब्दका अर्थ तू बकरा करना । क्योंकि बड़े पुरुष ‘जब अपने प्राण अर्पण करके भी, दूसरेका उपकार करते हैं; फिर वे वचनसे तो क्यों न करेंगे ?" ,
वसु राजाने कहा:--" माता ! मैं झूठ क्यों बोलूं ? . 'प्राणात्ययेऽपि शंसति, नासत्यं सत्यभाषिणः ।' .
(सत्यवादी पुरुष प्राणोंका नाश होनेपर भी मिथ्या भाषण नहीं करते हैं।) पापसे डरने वाले पुरुषके लिए जब किसी तरहका भी झूठ बोलना अनुचित है, तो फिर गुरुके वचनको अन्यथा करनेवाली मिथ्या साक्षी मैं कैसे दूँ ?"
माताने कहा:--" या तो तू गुरु पुत्रके प्राण रख, या सत्यका आग्रह रख । दोनों नहीं रक्खे जा सकेंगे।"
वसुने गुरुके पुत्रका प्राण बचाना स्वीकार कर लिया। पर्वतकी माता प्रसन्न होती हुई अपने घर चली गई। फिर मैं और पर्वत दोनों वसु राजाकी सभामें गये।
सभामें, मध्यस्थ गुणोंसे सुशोभित और सत् व असत् वाद रूपी क्षीर और जलका भेद करनेमें हंस समान, विज्ञ पुरुष एकत्रित हो रहे थे । आकाशके समान निर्मल स्फटिक शिलाकी वेदीपर रक्खे हुए सिंहासनपर, वसु सभापति बनकर बैठा था। वह ऐसा शोभित होरहा था, जैसे आकाशमें चंद्रमा शोभता है।
मैंने और पर्वतने 'अज' शब्दका, अपने अपने पक्षके