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शासन यक्ष
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कुबेर
उन्नीसवे तीर्थकर मल्लिनाथ का यक्ष कुबेर है। प्रवचनसारोद्धार में इसे कूबर कहा गया है। दिगम्बरों के अनुसार कुबेर इन्द्रधनुष के समान चित्रवर्ण का है। हेमचन्द्र ने भी इसका वर्ण इन्द्रधनुष सा ही कहा है किन्तु प्राचारदिनकर ने इस यक्ष का वर्ण नील बताया है । कुबेर का वाहन गज है।' इसकी भुजाए पाठ पौर मुख चार हैं । निर्वाणकलिका ने इसके मुखो का प्राकार भी गरुड जैसा बताया है । प्राशाधार और नेमिचन्द्र के अनुसार इस यक्षके दाये हाथो मे खड्ग, बाण, पाश और वरद ये प्रायुध तथा बाये हाथो में ढाल, धनुष, दण्ड और कमल होते है । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार दाये हाथो म वरद, परशु, शूल और अभय तथा बाये हाथो म मुद्गर, अक्षमून, बीजपूर और शक्ति है । निर्वाणकलिका मे दाये मायुधा म परशु के स्थान पर पाश कहा गया है । वरुण
बीमवे तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ का यक्ष वरुण श्वेतवर्ण व वृषभवाहन है। प्राशाधर ने दम यक्षको महाकाय कहा है। निर्वाणलिका, प्रतिष्ठासागद्धार और प्रतिष्ठातिलक के अनुमार वरण जटाजूटधारी है । श्वेताम्बरो के अनुसार वरुण के चार मुग्व और दिगम्बरो के अनुमार पाठ मुख होते है । क्याकि इस यक्ष को त्रिनेत्र बनाया गया है इमलिए प्राचारदिनकर न और स्पष्ट करने के लिए द्वादशलोचन भी कहा है। दिगम्बर परम्परा म वरुण के चार हाथ मान गय है पर श्वेताम्बगे के अनुसार यह यक्ष अष्टभुज है। प्राशाधर और नमिचन्द्र न इसका दायी भुजामा क प्रायुध खेट और खड्ग कहे है । ५ श्राचार दिनकर और निर्वाणकलिका के अनुसार दाये हाथा में गदा, बाण, शक्ति और बीजपूर तथा बार हाथा म धनुष, कमल, परशु और नकुल होत है । पिपष्टिगलाकापुरुषचरित्र और अमरकाव्य म पद्म केग्थान पर प्रक्षमाला का होना बताया
१ अपराजितपृच्छा मे सिह । २. निष्ठासारोद्धार, ३--१४७, प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३७ । ३. प्राचार्गदनकर, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचग्नि आदि । ४. निर्वाण कलिका, पन्ना ३६ । ५. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३११४८, प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३७ । ६. उदय ३३, पन्ना १७५ । ७. पन्ना ३६ ।