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________________ शासन यक्ष उल्लेख मिलता है । अपराजितपृच्छा ( २२१/४५) मे परशु, अक्ष, गदा, चक्र, शंख और वरद, इन प्रायुधो का विधान है किन्तु अपराजितपृच्छा का प्राधार कौन सी परम्परा है, यह समझ मे नही पाता । यक्षेश्वर चतुर्ष तीर्थकर अभिनन्दननाय के यक्षका नाम यक्षेश्वर है । प्रवचनसारोद्धार और निर्वाणकलिकामे उसे मात्र ईश्वर कहा गया है । अपराजितपृच्छा मे चतुरानन नाम बताया गया। पर उसकी किसी अन्य ग्रन्थ से पुष्टि नही होती। यक्षेश्वर का वर्ण श्याम, वाहन गज' और भुजाएँ चार है। दिगम्बर परम्परा मे इस यक्षके दाये हाथो मे बाण और तलवार तथा बाये हायों मे धनुष और ढाल, ये आयुध कहे गये है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार वह दायें हाथो मे मातुलिग और अक्षसूत्र तथा बाये हाथो में अंकुश और नकुल धारण करता है ।' अपराजितपृच्छा द्वारा नाग, पाश, वन और अकुश इन चार प्रायुधो का विधान किया गया है किन्त वह न तो श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार है और न दिगम्बर मान्यता क । तुम्बरु पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ का यक्ष तुम्बरु ।। कही कही इसे तम्बर भी कहा गया है । तिलोयपण्णती ने तम्बरव नाम स इसका उल्लेख किया है। तुम्बरू का वर्ग दिगम्बरो के अनुसार श्याम और श्वेताम्बरो के अनुमार श्वेत है । इसक। वाहन गाड बताया गया है और भुजाएँ चार । दिगम्बर परपरा के ग्रन्थो मे तुम्बरु यक्ष को सपंयज्ञापवीतधारी कहा है। प्रायुधविचार में, दिगम्बर परम्पग इस यक्ष के दोनो उपरले हाथा मे गर्प, नीचे के एक हाथ का वरदमुद्रायुक्त और दूसरे हाथ में फल (बीजपूर) मानती है जबकि श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार इसके दाये हाथो के प्रायुध वरद और शक्ति तथा बाये १ अपराजितपृच्छा म हमवाहन । २. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१३२; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३२ । ३. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७४ ; निर्वाणकलिका पन्ना ३४ । ८ प्रतिष्ठामारमग्रह, ५/२३-२४; प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१३३; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३२ ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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