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________________ चतुविशति यक्षी १७५ नोला पद्मकृतामना वरभदपमाणर्युता पाग सदवरद न दक्षिणकरे हम्तद्वये विभ्रती । वामे चाकुगवर्मणी बहुगुण गापा वियोका जन कुर्यादामरमा गणे. परिवना नयादगनन्दित ।। प्राचार्गदनकर उदय ३३, पन्ना १७७ नम्मिन्नेव तीर्थ ममुनाना अगोका दर्ष मृदगवी पद्मवाहना चतुर्भजा वरदपाशयुक्त दक्षिणकरा फाकुशयुक्तवामकग चति । निर्वाण निका, पन्ना ३५ दक्षिणी वरद पाशशोभित बिभ्रता भजी। वामो फलाकुनायगे मुदगाभा जामनाजनि ।। अगाकार या श्रागोतलतार्थ गामन देवता ।। अमरचन्द्र, गीतननाथ नरित्र, १६-२० ११. गौरी /मानवी ममुद्गगब्जरला वग्दा कनकप्रभाम । गोरी यजनीतिधन प्राश देवा मगापगाम ।। प्रागाधर,३।१६५ दोभिचतुभिदंघण पयोज वा विभ्रती भमभीष्टदानाम ।। श्रेयोजिनश्रीपदपद्मभगी गोरी यज विविधा भकारीम् ।। नमिचन्द्र, ३८८ पद्महम्ना मुवर्णामा गोरीदेवी चतुर्भज।। जिनेन्द्रगामने भक्ता वरदा मगवाहना ।। वमनन्दि, ५७. श्रीवन्माप्यथ मानवी गिनिभा मानगजिद वाहना । वाम हम्लयुग घटाकुगयुत नम्मार दक्षिणम ।। गाट म्फजितमुदगरेण वरदेनाल न बिभ्रती पूजाया सकल निहन्तु कलुष विश्वयम्वामिन ।। प्राचारदिनकर, उदय ३३,पन्ना १७७. नम्मिन्न व नीर्थे ममुत्पन्ना मानवी दवा गौरवर्गा सिंहवाना चतुर्भुजा वरदमुद्गन्वितदक्षिणपाणि कलगाकुगयुक्तवामकरा चेति । निर्वाणकलिका पन्ना ३५
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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