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________________ चतुर्विशति यक्ष १६१ सव्य : कररिह शरासनवज्रपाशम मुदगराकुशवगनपरधरन्तम् । बाणाबुजोरुफलमाल्यमहाक्षमालालीला यजाम्यरसित त्रिदशचखेन्द्रम्।। नेमिचन्द्र, ३३६ अरस्य जिननाथम्य खेन्द्रो यक्षरित्रलोनन । द्वादगोरुभज श्याम पण्मुखशंगवाहन ।। __ वमनन्दि, ५/५० वमुशगिनयन षडाम्य मदा कम्बुगामी धृतद्वादशोद्य इज श्यामलः तदनु च शापाशमद्वोजगभयामिम्मम्मदगगन्दक्षिण फारयन । करपरिचरण पुनर्वाम के बभ्राला नक्षगत्र स्परं कार्मक दघवतथवा म रक्षेश्वगभिम्पया लक्षित पान मर्वय भक्तं जनम्।। प्राचार्गदनकर, उदय ६ ., पन्ना १०५ तनाया-पन्न यक्षेन्द्रय पण्मग त्रिपामवर्ण शम्बग्व रन दाभज मालिगायनमदगरपाशाभययुक्तक्षिणपाणि नकुलधनुश्चमपनमालागासग युगवामपाणि चेति। निर्वाण कलिना, पन्ना ३६ यक्षाभूत् ५७म ग्वग्यक्ष श्यामाग गदवा, न । ममातुलिङ्गवाणामिमदागन पागभीप्रदो। दक्षिणान् पड्मजान बिभ्रद वामी चक्रधनुधंगे। मवमं नाकुगाक्षमूत्रान् तीर्थ वरप्रभा ।। अमरचन्द्र, अजिनरिग, १७-१८ १६ कुबेर मफलकधनुर्दडपद्मग्वगप्रदरमुपागवरप्रदाटपाणिम् । गजगमन चतुर्मखन्द्रचापद्यतिकलशाकनत यजे कुबरम् ।। प्राशाधर, ३।१४७
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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