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शासन यक्षियां
कहा गया है । हेलाचार्य, मल्लिषण और अपराजितपृच्छाकार ने ज्वालामालिका नामका प्रयोग किया है । श्वेताम्बर परम्परा के प्रवचनसारोद्धार में भी ज्वाला नाम मिलता है पर अन्य श्वेताम्बर ग्रन्थों में अष्टम तीर्थकर की यक्षी का नाम भृकुटि ही बताया जाता है।
___दिगम्बर ग्रन्थों में ज्वालादेवी को श्वेतवर्ण बताया गया हैं। जबकि प्रपराजिनपच्छा के अनुसार वह कृष्ण वर्ण है । भृकुटि का वर्ण पीत है । दिगम्बर लोग ज्वाला यक्षी को महिषवाहना मानते हैं । अपराजितपृच्छा ने उसे पद्मासना और वृषारूढ़ा कहा है। भृकुटि के वाहन के विषय में श्वेताम्बर अन्यों में किंचित् मतवैषम्य है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पौर अमरचन्द्र के महाकाव्य में उसे हंसवाहना,प्राचारदिनकर मे विडालवाहना प्रौर निर्वाणकलिका में वराहाहना कहा गया है ।"
अपराजितपृच्छामें धंटा, त्रिशूल, फल प्रोर वरद ये प्रायुध बताये गये हैं । वसुनन्दि ने पूरे प्रायुध नही गिनाये, केवल वाण, वन, त्रिशूल, पाश, दो पाश, धनुष पोर मत्स्य का नामोल्लेख किया है । इन्द्रनन्दि ने ज्वालिनीकल्प में त्रिशूल, पाश, मत्स्य,धनुष, बाण,फल. वरद और चक्र ये प्रायुध बताये हैं।" माशाधर और नेमिचन्द्र ने दायें हाथों में त्रिशूल या गूल, वाण, मत्स्य और तलवार तथा बायें हाथों में चक्र, धनुष, पाश और ढाल इस प्रकार कुल पाठ मायुध कहे हैं । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भृकुटि के दायें हाथों मे तलवार और मुदगर तथा बाये हाथों में ढाल और फरसा होते हैं।' महाकाली | मुतारा
नौवे तीर्थकर पुष्पदन्त या सुविधिनाथ की यक्षी दिगम्बरों के अनुसार महाकाली और श्वेताम्बरों के अनुमार सुतारा है। वसुनन्दि ने इसे भृकुटि भी कहा है पर वह भूल है । अभिधान चिन्तामणि में मुतारका और अपराजितपृच्छा में महाकाली नाम है । महाकाली कर्म पर मवारी करती है पर सुतारा
१-२. ज्वालिनीकल्प, श्लोक २ तथा अन्य ग्रन्थ । ३. विडाल के स्थान पर वराह भूल प्रतीत होती है । ८. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५/३१ ५. श्लोक ३ ६. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१६२, प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ, ३४३ । ७. प्राचारदिनकर, उदय, ३३, पन्ना १७१; निर्वाणकलिका, पन्ना ३५
तथा प्रन्य।