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८ ॥२॥ आदि नमो पद सघले ठवीस, [१] बार, (२) पन्नर (३) वली बार, (४) छत्रीश, (५) दश, (६) पण वीस [७] सग वीस, (८) पांचने [९] सडसठ (१०) तेरगणीस, (११) सित्तेर, [११] नवकोरोया (१३) पचवीस, (१४) वार. (१५) अठावीस, (१६) चोवीस, [१५] सितर एकावन पीस्तालोश. पांच लोगस्स काउसग रहीश, नवकारवाळी वाश, एक एक पदे उपवासज वीस, मास पटे एक ओलो करीश, इम सिद्धांत जगीश, ॥ ३ ॥ शकते एकासणुं तेवीहार, छठ अठम मासखमण उदार, पडीकम[ दोयवार, इत्यादिक विधि गुरुगमधार, एक पद आराधन भव पार, उजमणु विविध प्रकार, मातंग यक्ष करे मनोहार, देवी सिद्धाइ शासन सुखकार, विघ्न मिटावण हार, क्षमाविजय जस उपर प्यार, शुम भवियण धर्म आधार, वीरविनय जयकार.
॥ अथ श्री शोजनाचार्यकृत जिनस्तुतिः
प्रारज्यते ॥
भव्यांभोनविबोधनकतरणे विस्तारीकविलि--रंभासामन नापिनंदन महानष्टापदामामुरैः ॥ भक्त्या वंदितपादपद्म विदुषर्षा संपादय मोरिझता--भासाम जेनाभिनंदन महानष्टापदामामुरैः ॥१॥ ते वः पातु जिनोत्तमाः क्षतरुनो नाचिक्षिपुर्यन्मनो । दारा विभ्रमरोचिताः सुमनसा मंदारवा राजिताः ॥ यत्पादौ च सुरो.
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