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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3८४ निवारी सांनिध्यकारी, शासननी रखवाली जी ॥ धीर विमल कविरायना सेवक, बोले नय निहाळीनो ॥ ४ ॥ ॥ श्री गिरनारजीनी स्तुति ॥ मुर असुर वंदिय पाय पंकज, मयण मल्ल अक्षोभितं; धन मुघन श्याम शरीर सुंदर, शंखलंछन शोभितं ॥ शिवादेवी नंदन त्रिजगवंदन, भविक कमल दिनेश्वर; गिरनार गिरिवर शिरवर वन्दु, श्री नेमिनाथ जिनेश्वरं ॥१॥ अष्टापदे श्री आदि जिनवर, वीर पावापुरी वरे; वामपूज्य चंपा नयर सिद्धया, नेम रेवा गिरि वरे ॥ समेत शिखरे वीश जिनवर, मुक्ति पहात्या मुनिवरु; चोवीश जिनवर तेह वन्दु, सयल संघह मुख करुं ॥२॥ इग्यार अंग उपांग बारे, दश पयन्ना जाणिये छछेद ग्रन्थ प्रसथ्यहथ्था, चार मूल वखाणीये ॥ अनुयोग द्वार उदार नन्दी, सूत्र जिनमत गाइयें, यह वृत्ति चूर्णी भाष्य पेंतालीस, आगम ए मन ध्याइये ॥३॥ बिहुं दिशे बालक दोय जेहने, सदा भवियण सुखकरू, दुख हरिय अंबा लुंब सुंदर, दुरिय दोहग अपहरूं ॥ गिरनार मंडण नेमि जिनवर, चरण पंकज सेविया; श्री संघ सुप्रसन्न सदा मंगळ, करो अंबिका देविया ॥४॥ - For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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