________________
(१७) जपीजें हो, के देव वांदीजें ॥ मा ॥ नावना नावो हो, के सिचक ध्यावो । मा० ॥ जिनगुण गावो हो, के शिव सुख पावो ॥ मा० ॥ २ ॥ श्रीश्रीपाने हो, के मयणा वालें ॥ मा० ॥ ध्यानरसालें हो, के रोग ज टाले ॥ मा० ॥ सिक्ष्चक्र ध्यायो हो, के रोग गमायो ॥ मा० ॥ मंत्र ाराह्यो हो, के नवपद पा यो । मा० ॥ ३ ॥नाननी जोली हो, के पेहेरि प टोली॥ मा ॥ स हियर टोली हो, के कुंकुम घोली ॥ मा० ॥ थाल कचोली हो, के जिनवर खोली ॥ मा० ॥ पूजी प्रणमी हो, के कीजें उत्ती॥मा ॥४॥ चैत्र प्राप्तो हो, के मनने नहलासें ॥ मा० ॥ नवपद ध्याशे हो, के शिवसुख पासें ॥ मा० ॥ उत्तम साग र हो, के पंमितराया ॥ मा० ॥ सेवक कांतें हो, के बहु सुख पाया ॥ मा० ॥ ५ ॥ इति समाप्त ॥ १ ॥
॥अथ दितीय स्तवनम् ॥ ॥आ लालनी देशी॥ नवपद महिमा सार, सांजलजो नर नार ॥ आडे लाल ॥ हेज धरी आरा धीयें ॥ तो पामो नवपार, पुत्र कलत्र परिवार ॥आ॥ नवपद मंत्र आराधी यें ॥१॥ आंकणी ॥ पासोमास विचार, नव आंबिल निरधार॥या॥विधियुं जिनवर पूजीयें ॥ अरिहंत सिह पद सार, गणणुं जी तेर ह जार ॥ श्रा०॥ नवपदनुं ईम कीजीयें ॥ २ ॥ म यण सुंदरी श्रीपाल, आराध्यो ततकाल ॥ आ० ॥ फल दायक तेहने थयो ॥ कंचन वरणी काय, देही