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(१६) उत्तराध्ययनें गाया रे ॥ पु० ॥ ॥ अवसर पाय विपय रस राचत, ते तो मूढ कहाया रे ॥ काग नझावन काज विप्र जिम, मार मणि पबताया रे ॥ पु० ॥ २ ॥ नदी घोल पापाण न्याय कर, अवाट तुं आया रे ॥ अई सुगम आगल रही तिनकुं, जिन का मोह घटाया रे ॥ पु० ॥३॥ चेतन चारग तिमें निथें, मोद हार ए काया रे ॥ करत कामना मरपति याकुं, जिनकं अनर्गल साया रे ।। पुon४॥ रोहणगिरि जिम रतन खाग तिम, गुण सद् यामें समाया रे । महिमा मुरवयी वर्णत जाकी, सुम्पति मन शंकाया रे ॥ पु० ॥ ४ ॥ कल्पद सम संज म केरी, अति शीतल जिहां बाया रे ॥ चरण कर ग गुण धार महामुनि, मधुकर मन लोनाया रे । पु० ॥ ६ ॥ या तन बिन तिढुं काल कहो किम, ताचा सुख निपजाया रे ॥ अवसर पाय न चूक चेदानंद, सदगुरु यो दरमाया रे ॥ पु० ॥ ॥ इति ॥ अथ अांविलनी उत्तीनां नव स्तवन प्रारंनः ॥
॥तत्र प्रथम स्तवनम् ॥ ॥ केशर वरणो हो, के काढ कसंबो माहारा लान॥ । ए देशी ॥ गोयम नाणी हो, के कहे सुणो प्राणी गाहारा लाल ॥ जिनवर वाणी हो, केहियडे आणी । मा० ॥ आसोमासें हो, के गुरुने पासें ॥म ॥ नव पद ध्यासे हो, के अंग उन्नासें ॥ माम् ॥१॥ प्रांबिल कीजें हो, के जिन पूजीजें ॥ मा० ॥ जाप