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मोदवंत थ गुरुना मुखथकी उली तप ग्रहण करे. ए तपस्याग्रहणवखतपोशानें गुरुपासेंजवानोविधिको.
॥ अथ श्रीवीशस्थानक तपनो विधि सामान्यथी लखीयें ढैयें ॥
॥ तिहां प्रथम वैशाख, आषाढ, मार्गशीर्ष ने फागुण ए चार महिना मांहेला कोइ पण महिनामां शुन नि दोष मुहूर्त्त जो गुन दिवसें नंदीस्थापनापूर्वक सुवि हित गुरुनी समीपें वीशस्थानक तप विधिपूर्वक उच्चरे.
एनी एक ली वे महीने अथवा व महिने पू र्ण करे, कदाचित् उ महीनामां पूर्ण करी न शके तो तेली गणती मां न गएणाय, फरीथी नवी करवी पडे.
हवे एक नली करतां एना वीश पद बे, माटे कोइक तो वीश दिवसमां वीश पद प्रत्येक दिवसें जूदां जूदां गणे, अने कोइक तो वीशे दिवस सुधी एकज पद गणे, ने वली बीजा वीश दिवसमां बीजुं पद गणे, एवी रीतें वीश पढ़नी वीश उली करे.
तेमां पद आराधननादिवसें जो प्रबल शक्तिमान् होय तो हम तप करीने प्राराधे, एवी वीश यह में एक उनी पूर्ण करे, तेनी चारशो में वीशे उली पूर्ण थाय. एवी रीतें उत्कृष्टतप श्राराधे. तेथी हीनशक्तिवालो होय तो वह वह तप करी ने राधे, वली तेथी हीनशक्तिमान होय तो चन विहार उपवासेंकरी याराधे, तेथी हीनशक्तिमंत