SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 763
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६ए) ४१ पृबनातपसे नमः ४२ परावर्तनातपसे नमः ॥ ४३ अनुप्रेक्षातपसे नमः ४४ धर्मकथातपसे नमः ४५ वार्तध्याननिवृत्त त०४६ रोऽध्याननिवृत्त त ४७ धर्मध्यानचिंतन त० ४ शुक्त ध्यान चिंतन त पए बाह्य उपसर्ग त ५० अन्यंतर उपसर्ग त ॥ इति पंचाशत् तपोजेदाः ॥ ॥ए रीतें पच्चास नमस्कार करे, पनी उनो थक्ने अन्नब उससिएनो पाठकही पच्चास लोगस्सनो का. नस्सग्ग करी एक लोगस्स प्रगट कही पडी प्रथम दिव समां लख्या मुजब सर्व विधि अनुक्रमें करे. ए विधि लखवामां दृष्ट ६७७ मध्ये प्रथम दिवसें श्रीअरिहंत पदमां नवमो नमस्कार करतां झानातिशय संयुताय जोश्य तेने ठेकाणे जूलथी झानातिशयप्रतिहार्यसंयुता य एम उपाइगयेनुं . तथा गुणणुं वे हजारने स्था नकें १000 बपाई गयुं , ते सुधारी वांचवू ॥ ॥ हवे ए नवपदनुं तप ग्रहण करवा माटे गुरु पासें केवी रीतें जर्बु, तेनो विधि कहे . ॥प्रथम गुन दिवस गुन घडी शुन मूहूर्त जोड्ने सुं दर वस्त्र आनूषण पहेरी ललाटें तिलक करी मान अने सरशव मस्तकें धारण करी हाथमां मौलि बांधी अद त, सोपारी, श्रीफलादिक अने यथाशक्ति रोकड ना | लेइ नवकार गुणतो थको श्रीगुरुनी पासें जा छादशावर्त वंदन करी ज्ञान पूजा करे,पडी घणोज प्र
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy