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(६७७) रदिशें बिराजमान, कृष्ण वर्ण सहित. एवा सर्व
साधुने महारी त्रिकाल वंदना होजो. ६ बामि ॥ न ही नमो नाणस्स ए बहे पदें श्री म्यक्झान एकावन ने शोनित, अनिखूणे बिरा जमान, श्वेत वर्ण सहित, एवा श्री ज्ञान पदने महारी त्रिकाल वंदना होजो. हामि ॥ ही नमो दसणस्स, ए सातमे पढ़ें श्रीसम्यक् दर्शन सडशन बोलें शोनित, नैक्तव णे बिराजमान, श्वेतवर्णसहित, एवा श्री दर्शन पदने महारी त्रिकाल वंदना होजो. . श्वामि न ही नमो चारित्तस्स, ए आतमे पदें श्रीचारित्र सत्तर नेदें, शोनित, वायव्यखूणे बि राजमान, श्वेतवर्णसहित एवा श्री चारित्र पदने महारी त्रिकाल वंदना होजो. ए बामि ॥ ही नमो तवस्स, ए नवमे पढ़ें श्रीतप बारनेदें शोनित, ईशानरखूणे बिराजमान, श्वेत वर्ण सहित, एवा श्रीतपपदने महारी त्रि काल वंदना होजो. ए रीतें नव दिवस पर्यत विधि करवो, ते अहीं संपें कह्यो. विस्तारें गुर्वादि कथी जाणवो ॥ इति उलिनो संदेपविधि समाप्त ॥
हवे विशेषथी नवपद उलि करण आयंबिल तपनो विधि कहे .आश्विन तथा चैत्र शुक्ल सप्तमीथी मां मीने पूर्णिमा पर्यंत नव दिवस लगण तप करें. तिहां