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(६७१) अनंती वार रे ॥रे रे ॥ ७ ॥ अतिचारें बालोव तां रे, ताणे मनथकी मुनिराज रे ॥ निरतिचार पणे करी रे, मुनि ध्यान चड्या सजी साज रे ॥ ॥ रे रे ॥ ७ ॥ रहनेमा हृदय विचारीने रे, में तो कीधो महा अपराध रे ॥ ए नारी बंधव तणी रे, ताणे धिक धिक ए हूं तो साध रे ॥ रे रे ॥ ए॥ एही वखत खमावतां रे, ताने राजीमतीने तेणि वार रे॥नरकें पडतो मुझने राखीयो रे, तुं तो सर्व सतीमां शिरदार रे ॥ रे रे ॥ १० ॥ इति ॥ (आमां नेत्री गां थामां कर्त्तानुं नाम नथी तेथी अधूरी जाय .)
॥सऊन विषे दोहा ॥ ॥ सऊन होरासें अधिक, मूल न जाको होत ॥क हूं परायो होत नहीं, कुःखमें होत न्योत. ॥१॥ स ऊनऐ अंतर नहीं,राखे कोई सुजान । सऊनसें सुख होत है, यह निश्चे मन मान ॥२॥ सऊन जगमें व दु नहिं, बिरलो कई दिखात ॥ तिहि पिलान कीजें सुखद,जातें सब कुःख जात ॥३॥ सजान पर उपकार करि, लेत न क इह दाम ॥ देत सदा जो चाहियें, समयसू आवत काम ॥॥ सऊन सम जगमें नहीं, अवर सु कोइ पुमान ॥ आप बहुत कुःख देखिकें, देत और सुख जान ॥५॥ सजान स्वभाव देखि के, आपदु ता सम होन॥ सङनता सबतें अधिक,या सम और न कोन ॥६॥ संऊन नाम धरायकें, नटकत जगमें और ॥ पैलहन युत देखि के,संग कीजियें गैर ॥७॥