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(६५७) बीजी नवी टीका तो अनेक डे, परंतु ते आधुनिक ,माटेपूर्वाचार्योयें ते प्रमाण करेली समजवी नही. यामां मात्र पुरातन टीकाज प्रमाण करेली . ते मज एने लगता कल्पसूत्रादिकनी संख्या पण एमां गणी नथी, माटे तेनी संख्या सर्व जूदी जाणवी.
आमां आवश्यक, आचारांग, सूयगडांग, दशवै कालिक, उत्तराध्ययन तथा कल्पसूत्र, ए बनी निर्यु क्ति श्रोनबादुस्वामित डे. _तथा निशीथनाष्य,बृहत्कल्पनुं लघुनाष्य तथा वृह भाष्य, व्यवहारनाष्य, जितकल्पनाष्य, पंचकल्पनाष्य अने उघनियुक्ति नाष्य, ए सात नाष्य पूर्वाचार्यकृत ने.
तथा याचारांग, सूयगडांग, नगवती, जंबुछीप पन्नति, आवश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, पा खीसूत्र, अनुयोगहार, नंदी, निशीथ, वृहत्कल्प, व्य वहार, दशाश्रुतस्कंध, पंचकल्प, जितकल्प, ए शोलनी चूर्णि पूर्वाचार्यकृत ने.
अने टीकामांब सूत्रनी टीका श्रीहरिजइसरि कृत , नव अंग तथा नववा नपांगनी टीका श्री अजयदेव सूरिकत, आचारांग अने सूयगडांग ए बे अंगनी टीका शीलंगाचार्य कृत ने, पांचनी टीका मलयगिरिजीमहाराजकृत , तथा बीजी टीका पृथक् पृथक आचार्यकृत डे. सरवालानी संख्यामां सर्व सूत्रनी पहेली महोटी, रत्ति तथा लघुत्ति जे पूर्वा चार्यकत , तेज लीधेली . बीजीलीधी नथी. ए
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