________________
(५५२) ॥वीर॥५॥ नक्ते नव्य जीव जे होय, पंच नवें मु क्ति लहे सोय ॥ एहमा बाधक ले नही कोय, व्यव हार केरी रे, मध्यम फलनी ए वात ॥ उत्कृष्ट योगें रे, अंतरमुहूर्त विख्यात ॥शिव सुख साधे रे,बातमने अ वदात ॥ वीर ॥६॥चेत्री पूनम महिमा देख, पू जा पंच प्रकार विशेष ॥ तहमा कणिम नही कांरे ख, इणी परें नांखे रे,जिनवर उत्तम वाण ॥ सांजली बड्या रे, केश्क नविक सुजाण ॥ इणि परें गाया रे, पश्मविजय सुप्रमाण । वीर ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ प्रस्ताविक दोहा कवित्त सवैया वगेरे प्रारंनः॥
॥ दोहा ॥ सत्य म बोडीश चतुर नर, लही चिदु गणि होय ॥ सुख दुःख रेखा कर्मकी, मेट न शके कोय ॥१॥ हिंसा उखनी वेलडी,हिंसा पुरखनी खाण ॥ जीव अनंत नरकें गया,हिंसा तणे प्रमाण ॥ २॥ दया ते सुखनी वेलडी, दया ते सुखनी खाण ॥ जीव अनं त स्वर्गे गया, दया तणे परिमाण ॥ ३ ॥ जीव मा रंतां नरक डे,राखंतांजे सग्ग ॥ ए बेद वाटडी, जि ण नावे तिण लग्ग ॥४॥ विण कपास कपडं नही, दया विना नहि धर्म ॥ पाप नही हिंसा विना,जो एहज मर्म ॥ ५ ॥ धन वंडे एक अधम नर, उत्तम वंजे मान ॥ ते थानक सदु मीयें, जिहां लहियें अप मान ॥ ६ ॥ बार बुलावण बेसणुं, बीडी बेकर जो ड ॥ जिणघर पांच बब्बा नहि, ते घर दूरे बोड ॥७॥
बप्पय ॥ हरखे किश्युं गमार, देखि धन संपत ना