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________________ (५४७) ॥४॥ जिहां तिहां संग न कीजियें हो, रहीयें सहेजा नंद ललना॥ नित्यलान कहे प्रनु सेवियें हो, लीजिये शिवसुरख कंद ॥ म० ॥ ५॥ इति ।।। ॥धमाल ॥ नयरी वणारसी जाणीयें हो, अश्वसेन कुल चं द ललना ॥ वामानंदन वंदीयें हो, पासजी सुरतरु कं द॥ परमेश्वर नित्य गुण गायें हो,अहो मेरे ललना गावत शिवसुख पायें हो ॥१॥ ए टेक ॥ फणि घर संबन नव कर जिनजी, सबल घनाधन सार ललना ॥ संयम लेई शत तीनगुं हो, सवि कहे तुं. धन्य धन्य ॥ पर० ॥२॥ वरस शत एक ान हो, सीधा समेत गिरीश ललना ॥ शोल सहस मुनी तुम तणा हो ॥ समणी सहस अडत्रीश ॥ पर० ॥ ॥३॥ धरणीधर पदमावती हो, प्रनु शासन रख वाल ललना ॥ रांग सोग संकट टले हो, नाम ज पतो जयमाल ॥ पर० ॥ ४ ॥ पास वाश पूरो अब मेरी, अरज एक अवधार ललना ॥ श्रीनय विजय वि बुध पसायथी हो, जस कहे नवजल तार ॥ पर॥५॥ ॥राग वसंत ॥ ॥श्रीचिंतामणि पास प्रनु तारा, मंदिर बरसे रंग रे ॥ ए टेक ॥ ग्यान गुलाल अबिर उडावत, समता नीर सुचंग रे ॥ श्रीचिं० ॥ मंदिर ॥१॥ अनुनव लहेर फूली फूलवाडी, फबकती नव नव रंग रे ॥ ॥श्री० ॥२॥ उपशम वाघा अंग अनोपम, गुकल
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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