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________________ (५४६) दोए मुकि सिधाए, रूप कहे हम लेत बलईयां ॥ ॥ हो ॥ ॥ इति ॥ ॥राग वसंत ।। नहींरे नाहार नवरं। बनायो, अपने नेमजीको घर रे ॥ १ ॥ हारे नहीं २ नाहार ॥ ए टेक ॥ आंबो मोस्यो केसू फूटयां, फूल्युं सघलुं वन्न रे ॥हां० ॥ ॥ ॥ उपशम रसको रंग जयो हे, अबिर अरगजा घर रे ॥ हां ॥३॥पंच समिति खेले सब सहीयो, शील सदाकों धर रे ॥ हां० ॥ ४ ॥रास मच्यो हे -गुनमति सखीको, कुमति सखीकों मर रे ॥ हां ॥ ॥ ५॥ फगुथा दो नर जोली अविचल, माहानंदको घर रे ॥ हां ॥ ६ ॥ इति । ॥राग धमाल ॥ ॥ वामा नंदन अंतर जामी, जीवन प्राण था धार ललना ॥ दरिसण देखी ताहारुंहो, सफल कस्यो अवतार ॥ मन मोहन गोडी पासजी हो, अने हो मेरे ललना, तुम समो नहि कोई देव ॥ मन ॥ ॥१॥ तुम साथें मुज प्रेम बन्यो हे, न गमे बीजानो संग ललना ॥ तुम पसायें पामीयें हो, अति घणो । त्सव रंग॥म० ॥ ॥ अमने मोटी होंश मुक्तिनी, ते आपो मुफ स्वामि ललना ॥ तुं प्रनु सुरतरु सारिखो हो, पूरण वंडित काम ॥ म०॥३॥ महेर घणी प्रनु राखीयें हो, गुंकडं वारो वार ललनां। नेह कीधो तु मा खरो हो, नवि जाऊं बीजे दरबार ॥ म० ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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