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(५३७) डियोजी बाल ॥ सिंहादिकना जय तणा जी,करवावो रखवाल ॥३॥०॥ पांचशे जोधा बोलावीने जी, दीया कुमरनेजीला।। ते साधुने खबर नहि जी,साथें वहे शिरदार ॥४०॥ १० ॥ सावथि नगरीयं चालियो जी, कुंती नगरीजी जाय ॥ नगरी बहिनोई तणी जी, शंक नाणी काय॥४१॥दाहा।। पां चेशे तिण अवसरें, खावा पीवा काज ॥ वलो वलीच लता रह्या, एकल रह्या मुनिराय ॥१॥ हवे किम करे गोचरी, उपसर्ग व्यापे केम ॥ एकमना था सांजलो, मुनी करे ने जेम ॥ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ तिण अवसर मुनिराय, कुंति नगरीमांहे,सकोमल साधु। वि हरण विरियां पांगुस्सा ए॥१॥ वाजे खूवर जाल, दाऊ पग सुकमाल ॥ सु० ॥ दो पहेराने तावडे ए ॥२॥ निरमोही निरमाय, रजा जोवंता जाय ॥ सु० ॥ गन तणी परें गोचरी ए॥३॥ सुसत उतावला नांहि, धीरज धरे मनमांहि ।। सु० ॥ गयवरनी परें मलप ताए ॥ ४ ॥ राय राणी तिण वार,रमतां पासा सा र ॥ सु० ॥ महेल तले मुनि श्राविया ए॥ ५ ॥प ड्यो हे रागीनी दिछ, खंधक महेलनी हे ॥ सु० ।। एतो दुवे माहरो बंधुवो ए ॥ ६ ॥ चिंता आवी पि हीर, नयरों छूटुं नीर ।। सु॥ विरह व्यापी चिंता थईए ॥ ७ ॥ राजा साहमो जोय, राणी श्म किम रोय ॥ सु० ॥ सुखमांहे उख किम दुवां ए ॥॥ साधुने जावतो देख, राजाने जाग्यो शेष ॥ सु० ॥