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(५३३) अचल अक्ष्य निराबाधो जी ॥ पूर्णानंद दशा सही, विलसे सिम समाधो जी॥ ६ ॥ चो० ॥ श्री जिनचं इनी सेवना, प्रगटे पुण्यप्रधानो जी ।। सुमति सागर अति उनसे, साधुरंग प्रनुध्यानो जी॥ ७ ॥ चो० ॥ सुविहित गब खरतरवरू, राजसागर उवकायो जी ॥ ज्ञानधर्म पाठक तणो, शिष्य सुजस सुखदायो जी ॥ ७॥ चो॥ दीपचंद पाठक तणो, शिष्य स्तवे जि नराजो जी ॥ देवचंद पद सेवतां, पूर्णानंद समा जो जी ॥ए ॥ चो० ॥ इति देवचंजीकत चतुर्विश तिजिन स्तवनं समाप्तम् ॥
॥अथ खंधकमुनिराजनुं चोढालियुं ॥ ॥ ढाल पहेली॥ नमूं वीर शासन धणी जी, गण घर गोयम स्वाम॥ कथाअनुसारें गायगुंजी,खंधकना गुणग्राम ॥ १ ॥मावंत जोय जगवंतनो जीझान ।। ॥ ए आंकणी ॥ अति दमा अधिकी करी जी,संजम धारी जी जान॥शिवमारगने कारणें जी,रहेता धरमने ध्यान ॥२॥ ० ।। त्वचा उतारी देहनी जी, रहेता समताजीनाव ॥ जिनधर्म कीधो दीपतोजी,महोटा ए मुनिराव ॥३॥०॥सावथि नगरी शोनतीजी, कनक केतु तिहां नूप ।। राणी मलयासुंदरी जी, खंधक कु मर अनूप ॥ ४ ॥६० ।। सघना अंगें सुंदर जी,इंडी नही एक हीण |प्रथम वयें चढती कला जी, चतुर कला प्रवीण ॥ ५ ॥ २० ॥ विजयसेन गुरु प्रावी या जी,साधु तणे परिवार ॥ ज्ञानगुणें कर आगला