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(५३१) नाव तिहां प्रनु न कीयो । गुरु परिणामता, वीर्य कर्ता थई, परम थकीयता अमृत पीधो॥४॥ स॥ शुक्ता प्रनु तणी, यात्मनावें रमे, परम परमात्मता तास थाये ॥ मिश्र नावें अने, त्रिगुणनी निन्नता, त्रि गुण एकत्व तुऊ चरण आये ॥५॥स ॥ उपशम रस नरी, सर्व जन संकरी, मूर्ति जिनराजनी आज नेटी॥ कारणें कार्य निष्पत्ति श्रदान ने, तिणे नव चमणनी जीड मेटी ॥ ६ ॥ स ॥ नयर खंजायतें, पार्श्वप्रनु दर्शनें, विकसते हर्ष उत्साह वाध्यो ॥ हेतु एकत्वता रमण परिणामथी, सिदि साधकपणो आ ज साध्यो ॥ ७ ॥ स० ॥याज कृत पुण्य, धन दोह माहारो थयो, आज नर जनम में सफल नाव्यो । देवचं स्वामि त्रेवीशमो वंदीयो, नक्ति जर चित्त तुऊ गुण रमाव्यो ॥ ॥ स० ॥ इति ॥ ॥ अथ श्रीमहावीर जिन स्तवनं ॥ कडखानी देशी॥
॥तार हो तार प्रनु, मुफ सेवक नणा, जगतमां एटर्बु सुजश लीजें ॥ दास अवगुण जयो, जाणी पोता तणो,दयानिधि दीन पर दया कीजें ॥१॥ता॥ राग थे नस्यो, मोह वैरी नज्यो, लोकनी रीतिमां घणुये रातो॥क्रोधवश धमधम्यो, गुम गुण नवि र म्यो, जम्यो नवमांहि हुँ विषय मातो॥२॥ता०॥ आदरयुं आचरण, लोक उपचारथी, शास्त्र अन्यास पण काई कीधो । शुक्ष श्रदान वत्ति, अात्म अवलंब विनु, तेहवो कार्य तिणे को न सीधो ॥३॥ ता० ॥