________________
(420)
तास गुण धर्म पक्व सहु जी, तुऊ गुण एक तणो देश ॥ ३ ॥ वि० ॥ एम निज नाव अनंतनी जी, अस्तिता केटली थाय ॥ नास्तिता स्वपर पद अस्ति ताजी, तुक समकाल समाय ॥ ४ ॥ वि० ॥ ताह रा शुद्ध स्वनावने जी, यादरे धरी बहु मान ॥ तेह ने तेहीज नीपजे जी, ए कोई अद्भुत तान ॥ ५ ॥ वि० ० ॥ तुम्ह प्रभु तुम्ह तारक विजुजी, तुम समो अवर न कोय ॥ तुम दरिसथकी हूं तस्यो जी, शुद्ध आलंबन होय ॥ ६ ॥ वि० ॥ प्रनुतणी विमलता लखी जी, जे करे थिर मन सेव ॥ देवचं पद ते लहे जी, विमल यानंद स्वयमेव ॥ ७ ॥ वि० ॥ इति ॥ ॥ अथ चतुर्दश श्री अनंत जिन स्तवनं ॥ ॥ दीठी हो प्रभु दीवी जगगुरु तुक | ए देश । ॥ ॥ मूरति हो प्रभु मूरति अनंत जिणंद, ताहरी हो प्रभु ताहरी मुक नयणे वसी जी ॥ समता हो प्रनु समता रसनो कंद, सहेजें हो प्रभु सहेजें अनुभव रस लसी जी ॥ १ ॥ जवदव हो प्रतु नवदव तापित जी व, तेहने हो प्रभु तेहने अमृतघनसमी जी ॥ मि च्याविष हो प्रभु मिथ्याविषनी खीव, हरवा हो प्रभु हरवा जांगुलि मन रमी जी ॥ २॥ नाव हो प्रभु नाव चिंतामणि एह, खतम हो प्रभु खातम संपति या पवा जी ॥ एहिज हो प्रभु एहिज शिवसुखगेह, तत्त्व हो प्रभु तत्वालंबन थापवा जी ॥ ३ ॥ जाये हो प्रभु जाये याश्रव चाल, दीठे हो प्रतु दीठे संवरता वधे