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(५००) सुर करणी संजायें, जो वारीयें हो नर करणी की ध के ॥ घट पट आगम लीपि कला, इत्यादिक हो सवि थाये निषेध के ॥ उलंग॥५॥ बनमबादि न्हव णादिकें, अवबा हो तिहां होय सुप्रसाद के ॥ जिहां अनुनव संभावना, ते पूजा हो किम करवो प्रमाद के ॥ उनंग ॥ ६ ॥ वृक्षानुगत नवि चर्चियें, लो जीने हो लोनीले सिके॥ मोहन कहे कवि रुपनो, गज लंडन हो नामें नवनिध के ॥ उलंग ॥ 3 ॥ ॥ अथ रुपनजिन स्तवन ॥ निड्डीनी देशीम ॥
॥ तृपन संबन दिन । टला,अति पावन हो की, पाताल के ॥ नाग्य योगें हवे नक्तिने, दीधुं दरिसण हो एह दीन दयाल के ॥ १ ॥ सौनगी साहेब सेवी यें॥ए अांकणी॥जक्त वत्तल महिमानिधि, करुणा कर हो उपशम रस पूर के ॥प्रगट थया नूपति पुरें, जिम प्रहरमें हो निषिधाचलें सूर के ॥ सोनागी० ॥ ॥॥अतिशयवंत जिनेसरू, जगजीवन हो नरदेव पर के ॥ पुग्यवशें सुप्रसन्न थया, समकितथी हो अनुनव अंकूर के ॥ सोनागी० ॥ ३ ॥ आज परम यानंद दु, आज वूठा हो अमिय जलधार के ॥ नवनय नंजण तुम तणो, जेह निरख्यो हो उतन दीदार के ॥ सोनागी० ॥ ४ ॥ सुर नायक सेवा करे, तुम मूरति हो सहि मोहनवेल के ॥ रस तीणा गुण बालवे, स्वर जीणा हो नारी गजगेल के॥सोनागी० ॥५॥ स्वाम नाम प्रनावथी, सवि संपद हो नवनिधि