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॥ अथ श्री सुपार्श्व जिनस्तवन प्रारंभः ॥
॥ रागसारंग ॥ तथा मल्हार ॥ ललनानी देशी ॥ ॥ श्री सुपास जिन वंदियें, सुख संपतिने हेतु ॥ ललना ॥ शांति सुधारस जलनिधि, नव सागरमांहे सेतु ॥ ल लना ॥ श्रीसु० ॥ १ ॥ सात हा जय टालतो, स तम जिनवर देव ॥ ललना ॥ सावधान मनसा क री, धारो जिनपद सेव ॥ ललना ॥ श्रीसु०॥ २ ॥ शि वशंकर जगदीश्वरू, चिदानंद भगवान ॥ ललना ॥ जिन रिहा तीर्थंकरू, ज्योति सरूप समान ॥ ॥ ज० ॥ श्रीसु ॥ ३ ॥ अलख निरंजन वबलू, स कल जंतु विशराम ॥ ल० ॥ श्रनयदान दाता सदा, पूरण तमराम ॥ ल० ॥ श्रीसु० ॥ ४ ॥ वीतराग मंद कल्पना, रति अरति जय शोग ॥ ललना ॥ नि शतंश रदशा, रहित अबाधित योग ॥ ललना ॥ श्री सु० ॥ ५ ॥ परम पुरुष परमातमा, परमेश्वर पर धान ॥ ललना ॥ परम पदारथ परमेष्ठी, परमदेव परमान ॥ ल० ॥ श्रीसु० ॥ ६ ॥ विधि विरंचि विश्वं जरू, ऋषीकेश जगनाथ ॥ ज० ॥ अघहर यघ मोच न धणी, मुक्ति परमपद साथ || ल० ॥ श्रीसु०॥ ७ ॥ एम अनेक निधा धरे, अनुभव गम्य विचार ॥ ल० ॥ जेह जाणे तेहने करे, आनंदघन अवतार ॥ ल णा श्रीमान ॥ ॥ अथ श्री चंप्रन जिनस्तवनं लिख्यते ॥
॥ राग केदारो ॥ तथा गोडी ॥ कुमरी रोवे याद करे. ॥ मुने कोइ मूकावे ॥ ए देश ] ॥
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