________________
(४४१) लाली ॥ सोबत समताकी में टाली, पातमा तपमें नही घाली ॥ अनंत नव वीत गया खाली, वेदना निगोदकी काली ॥ अमरपद जिनदास मागे, सदा पद प्रनुजी कुं लागे ॥ ॥
॥सीस नित नमुं नानिनंदन, चरण पर चढे के सर चंदन ॥ करत सब इंसादिक बंदन, कटत हे क मौका फंदन ॥ साध्यो तें शिवपुरको साधन, सर्व जीवनकुं सुख कंदन ॥ जिनद गुण जिनदास गावे, सीस चरणोंसं नमावे ॥३॥
॥ बोलत हैया मेरा हस कर, चढावं चंदन चूवा घस कर ॥ पेठा में धर्मोमें धस कर, पाप दल दूर गया खस कर ॥ चेतन दुवा खडा कमर कस कर, हाया काँका लसकर ॥ श्रीजिनराज जिहाज खासा, श रण जिनदास लिया बासा ॥ ४ ॥
॥ समज मन मेरा मतवाला, तुळं नहिं को ह टकणवाला ॥ वस्या तेरे दईए कुगुरु काला, दिया तें सुरगतिकुं ताला ॥ फेरतो ममताकी माला, वालतो जगवंत पर नाला ॥ दयाकू दे दिया ताला, देखो जिनदासका चाला ॥ ५॥
॥ किया में गणधर प्रेमपती, मुजे वरदायक हे स रसती ॥ करी निर्मल निर्यथ मति, पूत पर खडे जा गता जती ॥ मुफे बलवंत न सोल सती,मिटी मेरी उर्गतिकी सब गति ॥ एसा घन जिनदास गावे, अच ल पद नक्तिसें पावे ॥ ६ ॥