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(४३२) ॥ चो० ॥ प्राणातिपातनी पांचमी, बही आरंजकी रे केही॥ परिग्रहकी कही सातमी,ाठमी कायिकी रे के ॥ आ० ॥२॥ मिथ्यादसण अपच्चरकाणकी, नव दस एक कह। रे के। नव ॥ दिति पुति पारचकी, त्रयोदश ए सही रे के ॥त्रो० ॥ सामंतोनपात निः शस्त्र, स्वहस्तकी शोलमी रे ॥ स्व० ॥ सत्तरमी पाणव गी, विदारण अढारमी रे॥ वि०॥३॥अगानोग अ गनख के, बे मती वीश थरे के वे ॥ अपनप योग समुदायकी, बावीश ए लश् रे के॥ बा० ॥वी शमी ते रागकी, चोवीशमी हेरकीरे के ॥ यो ॥ पण वीशमी पिथिकी, कही विशेषकी रे के ॥ कही० ॥ ॥ ४॥ नेद बेहेंतालीश आश्रय, तत्त्वना ए कह्या रे के ॥ तत्त्व० ॥ सम्यक्दृष्टि जीव के,मनथी सह्या रे के॥ ॥ मन ॥ ॐगर गुरु शुनध्यानथी, आश्रवने तजो रे के ॥ आश्रव० ॥ विवेक कहे नविलोक के, शिव र मणी नजो रे के ॥ शिव ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ ढाल सातमी॥ प्राणी वाणं। जिन तणी॥ ए देशी॥
॥संवर तत्त्व ते सांजलो, संवरीयें यातमा नित्य रे॥ अरिहा जिनवरें जांखियो, आगममांहे शुनरी त रे.॥ आगममांहे शुनरीत सूचित, सुनित जगत गुरु नासियो सुख कंद रे ॥ सुख कंद अमंद आनं द ॥ जगत गुरु नासीयो सुख कंद रे ॥ ए आंकणी ॥१॥ पांच समिति त्रण गुप्ति जे, परिसह बावीश निवारो रे ॥ दशविध मुनिवर धर्म जे,ते मुनिजन नित्य