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________________ (४३१) आशाता, तेम वली मिथ्यात्व ॥ थावर दशको बागल कहे, सांजलो एह विख्यात ॥१॥नरक त्रिक अने व ली, पणवीस कषाय ॥ तिरिय ग मली कह्या, नेद बासठ ए थाय ॥ईग बि ति चन जाई, कुरखगई नपघा त ॥ होये प्राणीने ते सही,नीच कर्मनी ख्यात ॥॥ अगुन वरण अगुन रस, गंध असून तेम जाण ॥ फरस अशुन तेमज कह्यो, बागममां जिन नाण ॥ पढम संघयण विनाहीज, मूकी पढम संस्थान ॥ बहोंत्तेर नेद ए थया, जागो एहनुं मान ॥ ३ ॥ थावर सुदुम अपऊ, साधारण अस्थिर ॥ अगुन मुनग दुःस्वर, अनादेय अपजश धीर ॥ आगममां पाप तत्वना, नेद ए व्यासी जाण ॥ मूंगर गुरुनो से वक, तेहने नित्य कल्याण ॥ ४ ॥ ॥दोहा॥ पाप तत्त्वने ए कह्यु, हवे आश्रवनुंगा म ॥ पाप यावे जे जीवने,थाश्रव एहनुं नाम ॥१॥ ॥ ढाल बही॥ देखी कामिनी दोय के,कामें व्यापोयो रे के ॥ कामें व्यापियो॥ ए देशी॥ ॥ पांच इंशी कषाय चार के, अव्रत पण कह्या रे के ॥ अव्रत ॥त्रण योग त्रण नेद के, गुरु मु खथी लह्या रे के ॥ गुरु० ॥ हवे किरिया ते जोय के, पणवीश अनुक्रमें रे के ॥ पण ॥ तजीयें जेहथी हो यके, पुस्य सुसंक्रमे रे के ॥ पुण्य ॥१॥ पहेली का यिकी जाण के, बीजी अधिकरणकी रे के ॥बीजी॥ त्रीजी परषकी होय के, चोथी पारितापनकी रे के
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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