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(४२४) नवि० ॥ ७५ ॥ थावर विकलेंडी ने नारकी ए,एक न पुंसक वेद ॥ नवि० ॥ पऊमणुं अधिक बादर अग्गी ए, वैमानिक नुवणेद ॥नवि० ॥ ७६ ॥ निरय व्यंतर ज्योतिषी चनरिदिए, तिरियंच बितिडीक ॥ नवि०॥ पृथिवी पाणी वायु वसई ए, एक एक जीवथी अधि क ॥ नविण ॥ ७७ ॥ चिटुं गति नमी नमी उपनो ए, संप्रति प्रनु पद लोध ॥ नवि०॥ शास्त्रथकी जे विरु६ कह्यु ए, ते पंमित करजो गुच॥ नवि० ॥ ७७ ॥ हार हश्ये रयणनो ए, धरजो चतुर सुजाण ॥नवि०॥जणे गणे जे सांजले ए, तस घर कोडि कल्याण ॥न॥७॥
॥ ढाल नवमी ॥ कडखानी देशी॥ ॥ चनदराजमांहे जीव के के जुग जम्यो, सूक्ष्म वलीबादर अनंतीवारू॥ कर्मनीकोड नरीवकाम नि जर करी, पामीयें पास त्रिनुवन्नं तारू ॥ ७० ॥ नेट रे नेट प्रनु पास चिंतामणि, एहिज मुक्तिनो मार्ग सा चो। कुगुरु कुदेव कुधर्मने परिहरो, मोह मिथ्यामतें केम राचो ॥नेट० ॥१॥ नयर गुण दीव गुण वेलि वाघे सदा, पुष्करावर्त पास मेघ देवा ॥ श्रीसं घ मंझप तलें वेलि ते विस्तरे, कपजे आनंद सुकत मे वा॥नेट ॥ २ ॥ संवत ससी सायर चंश्लोचन (१७१२) स्तव्यो, श्राशोशुदि दशमी रविवार राजे॥सू रि शिर ताज गुरु राज आणंदजी, तस पटें सूरि वि जयराज बाजे ॥ने० ॥ ७३ ॥ धन धन हर्ष गुरु विबुध चूडामणि, जास दीक्षित जगें कीर्ति सारी ॥