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न फरसे, सत्यसिंहासन धारी रे ॥ आतम ॥१॥ कोडी कनक रतन नहि लेवे, घर घर निदा हारी रे ॥ कंदर्पदेवकुं जेर कीयो है, त्रिया जोग निवारी रे ॥ भात ॥ २ ॥ स्नान मऊन अरु परिग्रह त्यागी, वैरी मित्र न यारी रे॥ परमहंसकी पदवी लीनी, जा जोगीपर वारी रे ॥ातम ॥ ३ ॥ महीमंझ लमें विचरे जोगी, देह दिशा वीसारी रे ॥ रूपचंद चरणे शीस नामी, तेरी नक्ति न्यारी रे ॥ श्रा०॥४॥ ॥ अथ संप्रतिराजानुं स्तवन ॥राग आशावरी॥
॥धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे कीधां नत्तम काम रे.॥ सवा लाख प्रासाद करावी, कलियुग राख्यु नाम रे ॥ धन॥१॥ वीर संवत्सर संवत बीजे, ते रोत्तरें रविवार रे ॥ माहागुदि आतमी बिंब जरावी, सफल कियो अवतार रे ॥ धन ॥२॥ श्रीपद्मप्रन मूरति थापी, सकल तीरथ शणगार रे ॥ कलियुग क स्पतरु ए प्रगट्यो, वंबित फल दातार रे ॥ धन ॥ ॥३॥ नपासरा बे हजार कराव्या, दानशाला शय सात रे ॥ धर्म तणा आधार आरोपी, त्रिजग दुवि ख्यात रे ॥ धन ॥ ४ ॥ सवा लाख प्रासाद करा व्या, बत्रीश सहस नकार रे ॥ सवा कोडी संख्यायें प्रतिमा, धातु पंचागुं हजार रे॥धन०॥ ५ ॥ एक प्रा साद नवो नित नीपजे, तो मुखशुद्धीज होय रे ॥ एह अनियह संप्रति कीधो, उत्तम करणी जोय रे ॥ ॥धन ॥ ६ ॥ आर्य सुहस्ति गुरु उपदेशे, श्रावकनो