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(४०) कार चित्त न आणीयें, केहनें गाल न दीजें ॥ काम क्रोध लोन मारियें, तो अमर फल लीजें ॥ मा० ॥ ॥५३॥ करत कमाई जोडियें, केहनें दोष न दीजें। विपनां फल जो वावियें, तो अमृत फल किम लीजें। ॥ मा० ॥ ५४॥ बति कहें खरचे नही, ते पण मूरख महोटा ॥ वालो आव्यो नूलो जायशे, आगल पडशे खोटा ॥ मा० ॥ ५५ ॥ चाराशी लख जीवा जोनि मां, फिरिया वार अनंत ।। मुनि नीम जणे अरिहंत जपो, जिम पामो नव अंत ॥ मा० ॥ ५६ ॥ संवत शोल नवाणुयें, बीज ने बुधवार ॥ आसोमासे गाश्यो, बीकारी नगरी मकार ॥ मा० ॥ ५५ ॥ नीम नणे सद सांजलो, मत संचो दाम ॥ जिमणे हाथे वाव रो, तो सहि प्रावशे काम । मा० ॥ ५० ॥ नीम जणे सद् सनिलो, नवि कीजें पाप ॥ उबो अधिको जे में कह्यो, ते तमें करजो माफ ॥ मा० ॥ ५५ ॥
॥ अथ माहावीरस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥मुने ते दिननो विशवास , प्रनुजी तुमारो॥ साहेबजी तुमारो ॥ मु० ॥ दास तुमारो वोनवे, प्रनु पार उतारो ॥ मु० ॥ ॥ चोशल इंज था पिया, इंासन आप्युं ॥राज ६ि सुख संपदा, स मकित लइ थाप्यु ॥मु० ॥२॥ नक्त नली परें उ ६खो, तें तो शेठ सुदर्शन ॥ शूलि नांजी साहिबा, की धुं सिंहासन ॥ मु० ॥ ३॥ चारित्रथी चूकी करी, गणिका घर वसिया ॥ आषाढ नंदिषेण नस्या, तु