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हे ॥ कर्म कलंककी कीच नई है, ताथें जयो चम नारी है ॥जा॥१॥ त्रस जीवकी हत्या न करे, स्था वर करुणा कारी है। कूडी साख कथन नही कूडा, बोले बोल विचारी है ॥ जाण ॥ २ ॥ थापण मोसो अदत्त न लेवे, चोरी मारी निवारी है ॥ पंच साखें पाणिग्रहण करीने, अवर स्त्रीया ब्रह्मचारी है ॥ ॥ जा ॥३॥ स्नान प्रमित जल जिनकी सेवा, परियह संख्या धारी है ॥ रूपचंद समकितके सबन, ताकू वंदना हमारी है ॥ जा० ॥४॥इति ॥
॥ अथ जीवने समताविषे शिखामण ॥ .॥हो प्रोतमजी प्रीतकी रीत अनीत तजी चित्त धारीयें, हो वालमजी वचन तणो अति ऊमो मरम विचारीयें ॥ हारे तुमें कुमतिके घर जावो बगे, तुमें कुलमां खोट लगावो बो, धिग एठ जगतनी खावो बो॥ दो० ॥ १ ॥ अमृत त्यागी विष पीयो डो,कुम तिनो मारग लीयो बो,ए तो काज अयुक्त कीयो बो॥ ॥ हो ॥ ॥ ए तो मोहरायकी चेटी ने, शिवसंपत्ति एहथी बेटी ने, एतो साकर गलती पेटी में ॥ ॥ हो ॥३॥ एक शंका मेरे मन आवी , किणी विध ए चित्त नावी , एतो दाहण जगमां चावी २ ॥ हो ॥ ४ ॥ सदु ऋदि तमारी खाए , करी काम चित्त जरमाए , तुम पुण्ययोगें ए पाए
॥ हो ॥ ५ ॥ मत अांब काज बाग्ल बोवो, अनुपम नव विरथा नवि खोवो, अब खोल नयण