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(३४६) नाथजिको दरिसन करकें, मन जयो हम मनननसें ॥ चि॥ ॥ प्रनु दरिमनसें पाप कटत हे, तिमिर कटे जैसें अरुननसें ॥चि ॥३॥ आस करी दा स सरणें आयो, घेलचंद पाये परननसें ॥ चि॥
॥अथ पार्श्वजिन सवनं ।।रागकाफी॥ ॥आज रे में मुख देख्यो गोडी पारसको, मेरो स फल नयो दिन आज ॥जला जी मेरो सफल नयो ॥ अांकणी ॥ अश्वसेन राजाजीको नंदन, माता वामाजीको लाल ॥ आ॥ १ ॥ कमठ हठावर नागकू तारन, संजलाव्यो नवकार ॥ आ० ॥ २ ॥ नवोनव जटकत शरणे ढुंआयो, अब तो राखोजी मोरी लाज ॥ ॥३॥ उर देवकू बोहोत में ध्याया, किनसें न सस्यो मेरो काज ॥ आ० ॥ ४ ॥ रूपचंद कहे नाथ निरंजन,कतारों नवपार॥आगा।
॥ अथ अनजिनस्तवनं ।। राग काफी ।। ॥घणु मोवू नाम रे,मारे तो केसरीया वालानुं घणुं मोडूं नाम ॥ ए आंकणी ॥ कोई सेवे ब्रह्मा वाला कोई सेवे शंकर, कोईने विष्णु कोईने राम रे ॥ मारे तो० ॥ १ ॥ काल कंटक करूर जय टाल ण, सबल ए शरणर्नु ठाम रे ॥ मा० ॥ २ ॥ मू लचंद कहे प्रनु जे जगतारण, धुलेवा मंमण मोहोटुं धाम रे ।। मा० ॥३॥
॥अथ पार्श्वजिनस्तवनं॥ ॥ प्रगट्या ते पूरण अविनाशी, जीरे काम क्रोध