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रे, तप टाले ततकाल ॥ अवसर जहीने तेहनो रे, खप करजो जमाल ॥ नवि०॥ तप० ॥ ४ ॥ ते शुं बे संसारमां रे, तपथी न होवे जेह ॥ मनमां जे जे कामियें रे, सफल फले सही तेह || नवि० ॥ तप० ॥ ॥ ५ ॥ बाह्य अभ्यंतर जे कह्या रे, तपना बार प्रका र ॥ होजो तेहनी चालमां रे, जिम धन्नो अणगार ॥ ॥ नवि० ॥ तप० ॥ ६ ॥ उदथरतन कहे तपथकी रे, वाधे सुजस सन्नूर | स्वर्ग होये घर प्रांगणुं रे, दुर्गति नासे दूर || नवि० ॥ तप० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ नाव स्वाध्याय ||
॥ धुन धन ते दिन माहरो ॥ ए देशी ॥ | रे नवि नाव हृदय धरो, जे बे धर्मनो धोर ॥ एकलमन खंम जे, कापे कर्मनी दोरी || रे नवि० ॥ १ ॥ दान शियल तप त्रण ए, पातक मन धोवे ॥ नाव जो चोथो नवि मजे, तो ते निष्फल होवे ॥ रे नवि० ॥ २ ॥ वेद पुराण सिद्धांतमां, पटदर्शन नांखे ॥ जाव विना जव संतति, पडतां कोण राखे ॥ | रे नवि० ॥ ३ ॥ तारक रूप ए विश्वमां, ऊंपे जग जाण ॥ जरतादिक शुन नावथी, पाम्या पद निर वाण | रे नवि ॥ ४ ॥ औषध श्राय उपाय जे, मंत्र यंत्र ने मूली ॥ जावें सि६ होवे सदा, जावविष सदु धूली | रे नवि० ॥ ५ ॥ नदयरत्न कहे नावथी, कोल कोण नर तरिया || शोधी जो जो सूत्रमां, सकन गुएादरिया || रे नवि० ॥ ६ ॥ इति ॥