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________________ (३३०) मीठी दीलनी जूती, कामिनी न होये केहनी रे ॥ ए० ॥ ५ ॥ पगले पगले मन ललचावे, श्वासो सथी जूदी रे ॥ गरज देखीने घहेली थाये, काज के रे जाये कूदी रे ॥ ए८ ॥ ६ ॥ करणी एहनी कली न जाये, नयण तणी गति न्यारी रे ॥ गावं एहनु जेणें गायुं, तेणें निज सजति हारी रे ॥ ए० ॥ ७ ॥ लाख नाते ललचादे लंपट,विरु ने विपनी क्यारी रे॥ एहना पासमां जे नर पडिया, ते हास्या जमवारी रे ॥ ए० ॥ ७॥ कोडि जनन करी कोइ राखे, मान नी महोल मकारी रे ॥ तो पण तेहने सूतां वेचे, धडे न रहे धूतारी रे ।। ए॥ए॥ जो लागी तो सर्व स्व लूंटे, रूठी राक्षसी तोल रे ॥ एम जाणीने अल गा रहेजो, उदयरतन इम बोले रे ॥ ए० ॥ १० ॥ ॥ अथ संजवजिनस्तवन ॥ ॥ मोहन तारा मुखडाने मटके ॥ मोहन ॥ ए आंकणी ॥ नयण रसाला ने वयण सुखालां, चि तडं लीधुं चटके ॥ मोह ॥ प्रनुजी केरी नक्ति क रंतां, कर्मनी कस तटके ॥ मोह ॥ १ ॥ मुफ मन लोनी जमर तणी परें, जिनगुण कमलें अटके ॥ मो ह॥ रत्नचिंतामणि मूकीने राचे,कहो कोण काचतणे कटके ॥मोह॥॥ ए जिन थुणतांक्रोधादिक सङ, आस पासथी पटके मोहा केवलनाणी बदु सुख दानी, कुमतिकू दूर पटके ॥मोह ॥३॥ ए जिनने जे दिलमां नाणे, तेतो नूच्या नटके ॥मोह॥ नाव
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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