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(३३६ ) नुजी ने जी॥ ती॥ पग मांमयानी जग्या न दे जी। मु० ॥ ७ ॥ प्रनु दीठी अगदीठी करजो जी ॥ ती० ॥ मारी वीनतडी चित धरजो जी ॥ मु० ॥ ॥ ७ ॥ एवी पदासनी वाणी जी॥ ती० ॥ स्तव न जोडयु डे अमृत वाणी जी॥ मु॥ए॥
॥ अथ श्रीवीरजिन स्तवन ॥ फतमलनी देगी।
॥जगपति तारक श्रीजिनदेव, दासनो दास ७ ता हरो ॥ जगपति तारक तुं किरतार, मन मोहन प्रनु माहरो ॥१॥ जगपति ताहारे तो नक्त अनेक, मा हारे तो एकज तुंधणी ॥ जगपति वीरामां तुं सहा वीर, सूरत ताहारी सोहामणी ॥ २ ॥ जगपति त्रि शला राणीनो तुं तन, गंधार बंदर गाजीयो॥ जग पति सिदारथ कुल शणगार, राज राजेसर राजी यो॥ ३ ॥ जगपति जगतांनी नांगे ले जीड, नीड पडे रे प्रनु पारिखें ॥ जगपति तुंही प्रनु अगम अ पार, समज्यो न जाये मुफ सारिखे ॥ ॥ जगपति उदय नमे कर जोड, सत्तर नेव्याशी समे कियो । जग पति खंनायत जंबूसर संघ,नगवंत नावलॅनेटियो॥॥ ॥ अथ राणकपुरनुं स्तवन ॥ फतमलनी देशी ॥
॥ जगपति जयो जयो षन जिणंद, धरणासाहे धन खरचीयो । जगपति प्रौढ कराव्यो प्रासाद, उलट जर सुर नर अरचियो ॥ १ ॥ जगपति बानगुं मांगे वाद, सोवन कलशे फल हले ॥ जगपति चोबारो चोशाल, पेवंतां पातक गले ॥ २॥ जगपति अति