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________________ (३२५) होत्तरशो वारो रे ॥ पांझवनारीपदी, में राखी मा म उदारो रे ॥ शि० ॥ ७ ॥ ब्राह्मी चंदनबालिका, व ली शीलवंती दमयंती रे ॥ चेडानी साते सुता, राजि मती सुंदरी कुंती रे ॥ शि ॥ ए ॥ इत्यादिक में न इयां, नर नारीनां वृंदो रे ॥ समयसुंदर प्रनु वीर जी, पहेलो मुफ आणंदो रे ॥ शि ॥ १०॥ ॥दोहा॥ ॥ तप बोल्युं त्रटकी करी, दानने तुं अवहील ॥ पण मुफ बागल तुं किस्युं, सोनल रे तुं शील ॥१॥ सरसां नोजन तें तज्यां, न गमे मीठा नाद ॥ देह तणी शोना तजी, तुऊमां किस्यो सवाद ॥२॥ नारीयकी मरतो रहे, कायर किश्युं वखाण ॥ कू ड कपट बहु केलवी, जिम तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुफ आदरे, बंमी सदु संसार ॥ आप ए क तुं नांजतो, बीजा जांजे चार ॥ ४ ॥ करम निका चित तोडवा, जांजु जव जय जीम ॥ अरिहंत मुक ने आदरे, वरस मासी सीम ॥ ५ ॥ रुचक नंदी सर ऊपरें, मुफ लब्धं मुनि जाय ॥ चैत्य जुहारे शाश्वतां, आनंद अंग न माय ॥६॥ मोहोटा जोय ण लाखना, लघु कंथु आकार ॥ हय गय रथ पायक तणां, रूप करे अगार ॥ ७ ॥ मुफ कर फरसे न पशमे, कुष्टादिकना रोग ॥ लब्धि अविश ऊपजे, उत्तम तप संजोग ॥७॥ जे में तास्या ते कहूं, सु
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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